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महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता, परिभाषा, अवधारणा, उद्देश्य !!

महिला सशक्तिकरण का अर्थ है की औरतों के अंदर की क्षमता को समझते हुए उन्हें उनके फैसले खुद करने देने का अधिकार. इसे इंग्लिश में (वुमन एम्पावरमेंट) कहते है. औरतों की शक्तियों को बढ़ाने के लिए पुरे विश्व में अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस (International woman’s day) भी मनाया जाता है. ये दिनांक 8 मार्च को मनाया जाता है. जिससे की पुरे विश्व को पता चल जाता है की कोई भी महिला बेचारी नहीं बल्कि अदि शक्ति जगदम्बा का रूप है.

इस महिला सशक्तिकरण का मुख्य कारण ये है की औरतों पे हो रहे अत्याचारों को रोका जाये और औरतों को उनके अधिकारों के बारें में उन्हें जागरूप किया जाये. और हमे भी ये समझना होगा की यदि हमारे देश को आगे बढ़ना है तो हमे औरतों को पूरा मान सम्मान देना चाहिए और उनके अधिकारों को उनसे नहीं छीनना चाहिए.

महिला सशक्तिकरण की परिभाषा

यदि साधारण तरीके से बताये तो महिलाओं के सशक्तिकरण का अर्थ है कि महिलाओं को अपनी जिंदगी का फैसला करने की पूरी आजादी देना या उनमें ऐसी क्षमताएं पैदा करना जिससे की वे समाज में अपना सही स्थान पा सके।

संयुक्त राष्ट्र के अनुसार महिलाओं के सशक्तिकरण में मुख्य रूप से पांच कारण हैं:

  • महिलाओं में आत्म मूल्य की भावना जगाना
  • उन्हें उनके निर्णय लेने की आजादी देना और उनके अधिकार से अवगत कराना
  • हर जगह उन्हें पुरुष के बराबर समान अधिकार दिलाना और संबिधान में एक सही जगह बनाना
  • चाहें घर हो या बहार उन्हें अपने मन चाहे तरीके से काम करने देने की आजादी
  • अधिक सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था को आगे तक ले जाने में महिलाओं को उनके अधिकार दिलाना और उन्हें ये बताना

महिला सशक्तिकरण की आवयश्कता, परिभाषा, अवधारणा, उद्देश्य

महिला सशक्तिकरण की आवश्यकता

महिला सशक्तिकरण बहुत ही आवश्यक हो गया है. जैसा की हम सभी जानते हैं किसी भी राष्ट्र में आधी और कहीं तो आधे से ज्यादा आबादी औरतों की है. बिना महिलाओं के हम एक उज्जवल भविष्य की कल्पना भी नहीं कर सकते. पुराने जमानो से चला आ रहा है की औरतों को बस घर तक ही सीमित रहना चाहिए, उन्हें परदे के अंदर रहना चाहिए. उनकी एक सीमित आयु में शादी करा देनी चाहिए. औरतों का ज्यादा या तेज आवाज में बोलना मनो अपराध है. तो ये सब धरना लेके हमारा राष्ट्र जी रहा है. क्या सच में एक महिला को इस प्रकार अपना जीवन व्यतीत करना चाहिए. क्या उसे कोई हक़ नहीं की वो भी बहार निकले आदमियों से कंधे से कंधा मिला के काम करे और अपने परिवार का भरण पोषण करे.

औरतो की आवाज हमेशा से दवी हुई है हमारे समाज में इस लिए उन्हें आर्थिक और मानसिक रूप से मजबूत बनाने के लिए ये महिला सशक्तिकरण लागू किया गया. जिसके जरिये औरतों को पूरा अधिकार दिया जाता है की वो पुरुष के कंधे से कन्धा मिला के बाहर और घर के जिम्मेदारियों को उठाये.

  • पुराने जमाने से औरतों की आवाज दबी हुई है समाज में यदि उन्हें आर्थिक रूप से मजबूत बनाया जाये तो वो अपनी बात आराम से सभी तक पहुंचा पाएंगी और हमारा समाज उसी की बात सुनता है जिसकी आवाज में दम हो.
  • यदि हम औरतों को आर्थिक रूप से सशक्त बना देंगे तो वो पुरुष के साथ मिल के काम कर सकेगी और पुरुषों पे निर्भरता खत्म हो जाएगी.
  • ज्यादा तर औरते अपना कमाया हुआ धन अपने परिवार और बच्चों की परवरिश पे खर्च करते हैं. यदि वो अच्छे से कमा पाएंगी बाहर जा के तो वो अपने परिवार और बच्चों का अच्छे से भरण पोषण कर पाएंगी. केरल में महिलाये कमा के अपने बच्चों का भरण पोषण कर रही हैं अच्छे से ये सबसे अच्छा उदाहरण है आर्थिक रूप से सशक्त होने का.
  • आर्थिक रूप से महिला जब सशक्त हो जाती है तो वो अपनी समाजिक सुरक्षा और अधिकारों के लिए खुद खड़ी हो पाती है. जो महिला सशक्तिकरण की पहली सफलता होती है.

महिला सशक्तिकरण की आवयश्कता, परिभाषा, अवधारणा, उद्देश्य

महिला सशक्तिकरण की अवधारणा

महिला सशक्ति कारन की अवधारणा विभिन्न है जैसे की औरतों को आर्थिक, सामाजिक, राजनितिक और मानशिक रूप से मजबूत बनाना. कुछ समय पूर्व विश्व आर्थिक मंच की तरफ से ग्लोबल जेंडर इंडेक्स नामक एक आयोजन किया गया था जिसमे सभी राष्ट्रों की लैंगिग समानता को दर्शाया गया और वहां भारत का स्थान ८७वां था. जिससे ये साबित हो जाता है की अभी हम कितने पीछे हैं. और यदि हम लैंगिग समानता नहीं कर पाए तो हमारे देश का आगे बढ़ना मुमकिन नहीं. इन्ही सब अवधारणा को लेके चलते हुए महिला सशक्तिकरण पे पूरा जोर दिया गया और महिलाओं को सामाजिक, आर्थिक, राजनितिक और मानशिक रूप से सशक्त बनाने की कोसिस की जा रही है.

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Ankita Shukla

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