यदि हम पुराने जमाने की बात करें तो पहले औरतों को पाओं की जुटी माना जाता था. लेकिन ये चीज हर जगह नहीं थी. हमारे समाज में जहां एक औरत को माँ दुर्गा का अवतार माना जाता है तो दूसरी और उसी को एक नौकरानी, हवस मिटाने का सामान माना जाता है. कहीं कहीं तो इनको इस तरह से भी रखा जाता है की इन्हे जीतेजी नर्क का अहसास हो जाता है.
कुछ राज्यों जैसे हरियाणा आदि राज्यों में लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मर देते थे और कहीं गलती से बेटी पैदा हो जाये तो उसे बाद में मार देते थे. जिसके चलते लड़कियों का आभाव बढ़ता चला गया और हरियाणा में काफी काम औरतें बची. फिर वहां एक और पाप ने जन्म लिया जो इसी से जुड़ा था की जिस घर में कई सारे भाई व पिता होते थे और कोई औरत नहीं होती थी तो वहां एक बेटे की शादी करा देते थे और बाकि बेटे और ससुर उस बेचारी औरत का शोषण करते थे और ये सब बढ़ा था केवल लड़कियों की भ्रूण हत्या के कारन क्योंकि लड़कियों का आभाव जो हो गया था.
तो वहीं अगर मुसलमानो की बात करें तो वो भी कुछ अच्छा नहीं करते थे उनके समाज में एक
आदमी को तीन शादी करने का हक़ दिया हुआ है जिसके चलते वो अपनी किसी भी औरत को इज्जत और सम्मान नहीं देते थे. और इनके नियम में तीन तलाक जैसी कुप्रथा भी चली हुई थी. जिसके चलते वो जिसे चाहे व्याह लें और जिसे चाहे तलाक दे दें. लेकिन कुछ समय बाद इस नियम को हटा दिया गया है और अब कोई भी मुस्लमान किसी और को बिना किसी नियम और कानून के तलाक नहीं दे सकता.
तो कहीं औरतों को बहुत मारा पीटा जाता है, उन्हें आदमियों के और बेटे के बराबर दर्जा नहीं दिया जाता था. कभी कोई दहेज़ के लिए बहुओं को जला देता है तो कोई उन्हें घर से निकाल देता है. लेकिन अब ये चीज करना इतना आसान नहीं रहा क्यूंकि अब बहुत सारे कानून आ गए हैं औरतों के हक़ के लिए जिनके चलते औरतें अब खुद को महफूज समझती हैं.
सूची
महिलाओं के अधिकार और कानून
घरेलू हिंसा रोकथाम कानून
जैसा की बताया पहले के जमाने में महिलाओं पे घरेलू हिंसा होती थी. लेकिन अब ये करना इतना आसान नहीं है क्योंकि अब घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 के तहत कोई भी औरत जो इस प्रकार की परेशानियां झेल रही है वो पास के थाने में जा के अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है और तुरंत एक्शन लिया जायेगा.
वर्किंग प्लेस में उत्पीड़न के खिलाफ कानून
इस नियम के तहत यदि कोई औरत के साथ उसके वर्किंग प्लेस पे यौन शोषण किया जाता है तो वो इस बात की शिकायत कर सकती है और इस नियम के अंतर्गत तुरंत जाँच की जाएगी और उस महिला को पूरी तरह से जाँच न होने तक तीन महीने की सैलरी भी दी जाएगी.
कन्या भ्रूण हत्या के खिलाफ अधिकार
भ्रूण हत्या वैसे भी एक प्रकार का पाप है लेकिन इसे आज के समाज में कोई मानता नहीं और दिन प्रतिदिन लड़कियों को पैदा होने से पहले ही मारा जा रहा है जो की एक प्रकार का जुर्म क्योंकि हर औरत और लड़की को जीने का उतना ही हक़ है जीतना बाकियों को. इस जुर्म को रोकने के लिए ये कानून बनाया गया है.
नाम सार्वजनिक न करने या छुपाने का अधिकार
यदि किसी महिला के साथ किसी प्रकार का यौन उत्पीड़न हुआ हो और वो अपनी शिकायत और केस करना चाहे तो वो यदि न चाहे तो कोई भी उसका नाम नहीं उछाल सकता इस केस में औरत को पूरा हक़ है अपने नाम को गोपनीय रखने का.
रात में गिरफ्तार न होने का अधिकार
आपराधिक प्रक्रिया संहिता, सेक्शन 46 के तहत यदि किसी महिला को गिरफ्तार करना है तो उसके लिए सूरज डूबने से पहले और सूरज उगने के बाद ही उसे गिरफ्तार कर सकते हैं यदि बहुत जरूरी है तो इस मामले में मजिस्ट्रेट के आदेश होना अनिवार्य है.
यदि किसी महिला को बिना वारंट के गिरफ्तार किया जा रहा है तो उसे कारन बताना जरूरी है और उसे उसकी जमानत के अधिकारों की जानकारी भी देना जरूरी है. और इस केस उसके रिश्तेदारों को जानकारी देना भी पुलिस की जिम्मेदारी है.
समान वेतन का अधिकार
समान वेतन अधिनियम,1976 के तहत एक आदमी और एक औरत को सामान कार्य के लिए समान बेटन देना जरूरी है. इसमें दोनों के बीच भेद नहीं किया जा सकता है. यदि एक महिला एक २क्लास employee है वहीं एक आदमी भी उसी post पे है तो दोनों को समान आय मिलेगी.
मातृत्व संबंधी अधिकार
मातृत्व लाभ अधिनियम,1961 के तहत इस कानून के चलते कोई औरत अपनी प्रेगनेंसी के दौरान 26 सप्ताह की छुट्टी ले सकती है और इस दौरान उसे उसकी पूरी सैलरी दी जाएगी। ये उसका अधिकार है.
गरिमा और शालीनता के लिए अधिकार
यदि कोई महिला आरोपी है और उस समय उसे किसी भी प्रकार की चिकित्सा और जाँच की अवस्य्क्ता है तो वो कार्य केवल एक औरत ही कर सकती है या फिर किसी महिला पुलिस की मौजूदगी में ही ये कार्य होगा.
मुफ्त कानूनी मदद के लिए अधिकार
इस कानून के तहत यदि किसी महिला के साथ शोषण हुआ है तो उसे पूरी कानूनी कार्यवाही के लिए कोई भुगतान नहीं करना होगा और ये जिम्मेदारी पुलिस थानाध्यक्ष की है की वो (Legal Services Authority) के चलते उस महिला को वकील की व्यवस्था करे.
संपत्ति पर अधिकार
इस नियम के आधार पे किसी भी महिला का उसकी पुस्तैनी सम्पत्ति पे उतना ही हक़ होगा जितना बाकि आदमियों का.
पिता की संपत्ति पर अधिकार
इस नियम में एक बेटे और बेटी को समान हक़ मिलता है. यदि महिला के मरने से पहले कोई वसीहत नहीं बनी है तो पिता की मृत्यु के बाद बेटे और बेटी का उसके पिता के पूरी सम्पत्ति पे समान अधिकार होगा.
पति की संपत्ति से जुड़े हक
किसी भी महिला को उसके पति की सम्पत्ति पे मालिकाना हक़ नहीं होता लेकिन यदि दोनों के बीच किसी प्रकार का विवाद चल रहा हो तो पति की औकात के अनुसार महिला को सही गुजरा मिलना चाहिए. ये कानूनी नियम है.
और यदि किसी पति की मृत्यु हो गयी हो तो उसकी सम्पत्ति उसके बेटे को मिलती है और यदि कोई बेटा नहीं है तो वो सारी सम्पत्ति पे महिला का अधिकार होता है.
पति-पत्नी में न बने तो
यदि पति पत्नी की न बने तो उस केस में सीआरपीसी की धारा 125 के तहत औरत अपना और अपने बच्चों का गुजरा अपने पति से मांग सकती है और यदि दोनों का तलाक होने वाला हो तो एक गुजरा राशि निश्चित की जाती है जो की आदमी की औकात के अनुसार होती है.
मुफ्त कानूनी मदद लेने का हक
किसी महिला के साथ दुष्कर्म हुए हो तो उसे पूरा अधिकार है की वो मुफ्त कानूनी मदद ले सकती है. वो अदालत में अपने लिए वकील करने का अनुरोध कर सकती है और उसका खर्च सरकार उठाये इस बात का अनुरोध कर सकती है. ये केवल गरीब औरतों के लिए नहीं बल्कि हर प्रकार की औरतों के लिए है. चाहें वो आर्थिक रूप से सक्षम ही क्यों न हो.
शिकायत कहाँ कर सकते हैं?
क्राइम अगेंस्ट वुमन सेल पे आप अपनी शिकायत कर सकते है इसके अलावा 100 नंबर या महिला हेल्पलाइन नंबर 1091 पर कभी भी २४-७ कॉल करने की सुविधा उपलब्ध है जहाँ आपको पूरी सहायता मिलेगी या आप अपने इलाके के थाने में शिकायत कर सकते हो.
सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइंस के मुताबिक, दिल्ली लीगल सर्विस अथॉरिटी, राष्ट्रीय महिला आयोग, एनजीओ आदि की डेस्क क्राइम अगेंस्ट वुमन सेल में शिकायत कर सकते हो.
आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी किसी लगी हमे जरूर बताये और यदि आपके मन में किसी प्रकार सवाल या हमारे लिए सुझाव आये तो वो भी हमे जरूर बताइयेगा. धन्यवाद.