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ग़ज़ल और कव्वाली में क्या अंतर है !!

नमस्कार दोस्तों…आज हम आपको “ग़ज़ल और कव्वाली” के विषय में बताने जा रहे हैं. आज हम बताएंगे कि “ग़ज़ल और कव्वाली क्या है और इनमे क्या अंतर होता है?”. अक्सर लोगों के मन में कई अलग अलग प्रकार के सवाल उठते रहते हैं, उन्ही सवालों में एक सवाल “ग़ज़ल और कव्वाली में क्या अंतर है?” भी है. जिस सवाल को हमसे भी हमारे कई पाठकों द्वारा कमेंट बॉक्स के जरिये पूछा गया. जिसके बाद आज समय मिलने पर हम इस ब्लॉग को लिखने जा रहे हैं. हम उम्मीद करते हैं कि इसके जरिये हम आपको बेहतर जानकारी मुहैया करवा पाएंगे. तो चलिए शुरू करते हैं आज का टॉपिक.

ग़ज़ल क्या है | What is Ghazal in Hindi !!

ग़ज़ल क्या है | What is Ghazal in Hindi !!

ग़ज़ल को उर्दू की एक विधा कहा जाता है जो कई भागों से मिलकर बना होता हैं जिसमे पहला भाग मिश्र है, जो किसी भी ग़ज़ल के अंदर शुरुआत की पंक्ति के रूप में होता है. दूसरा भाग शेर है, जो दो मिश्र अर्थात पंक्ति से मिलकर बनता हैं. उसके बाद तीसरा भाग मतला होता है, जो किसी भी ग़ज़ल का पहला शेर होता है.

उसके बाद आता है मक्ता, जो चौथा भाग होता है, जिसका अर्थ होता है कि जब कवि अपना नाम आखिर के शेर में लिख के शेर को पूरा करता है तो वो मक्ता कहलाता है, और यदि अंत के शेर में लेखक का नाम या उपनाम नहीं पाया जाता है तो उसे हम मक्ता नहीं कह सकते. इन सब चीजों का प्रयोग करके जब इनके साथ बहर का प्रयोग किया जाता है तो वो ग़ज़ल बन जाती है.

कव्वाली क्या है | What is Qawwali in Hindi !!

कव्वाली क्या है | What is Qawwali in Hindi !!

कव्वाली सूफी छंदों को प्रस्तुत करने के एक तरीके से ही संदर्भित है. कव्वाली भारतीय उपमहाद्वीप में सूफ़ीवाद और सूफ़ी परंपरा के अंतर्गत भक्ति संगीत की एक धारा के रूप में पायी जाती है. ये कोई आधुनिक या आज कल की नहीं है, बल्कि इसका इतिहास 700 साल से भी अधिक पुराना है. ये केवल भारत की नहीं बल्कि पाकिस्तान एवं बांग्लादेश सहित बहुत से अन्य देशों में संगीत की एक लोकप्रिय विधा के रूप में जानी जाती है. वैसे तो ये बहुत पहले से मौजूद थी, लेकिन इसका अंतर्राष्ट्रीय स्वरुप नुसरत फतेह अली खान के गायन से सामने आया था.

Difference between Ghazal and Qawwali in Hindi | ग़ज़ल और कव्वाली में क्या अंतर है !!

# कव्वाली सूफी संगीत का एक रूप है जो प्रसिद्ध संत निजामुद्दीन औलिया के शिष्य अमीर खुसरो द्वारा लोकप्रिय हुआ था और वहीं दूसरी ओर ग़ज़ल एक उर्दू की विधा है, जिसमे कई भाग होते हैं. जिससे ग़ज़ल का पता लगाया जाता है.

# ग़ज़ल एक काव्य के रूप में होती है और जैसे इसे गाया जाता है, वैसे ही इसे संदर्भित किया जा सकता है, लेकिन कव्वाली सूफी छंदों को प्रस्तुत करने के एक तरीके से ही संदर्भित होती है।

# ग़ज़ल में आम तौर पर सिर्फ एक प्रमुख गायक होता है उसके अलावा एक हारमोनियम, एक तबला और कभी-कभी अन्य वाद्य यंत्र के साथ गाया जाता है, जबकि कव्वाली में एक या दो प्रमुख गायक होते हैं, एक पूरा कोरस, तबला और ढोलक के लिए और एक ताली बजाने के लिए होता है।

ग़ज़ल प्रदर्शन के लिए छंदों का चुनाव आमतौर पर ग़ज़ल कविताएँ होती हैं, जो कि कव्वाली के दौरान बेवफा और जुदाई के दर्द पर ध्यान केंद्रित करती हैं, एक कव्वाल की महफ़िल में केवल एक या दो गाने ही ऐसे विषय हो सकते हैं।

हम पूरी आशा करते हैं कि आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी अच्छी और सुविधाजनक लगी होगी। और यदि फिर भी किसी प्रकार की गलती आपको नजर आये तो आप हमे नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में कमेंट के जरिये बता सकते हैं और साथ यदि कोई सुझाव हो, तो वो भी आप दे सकते हैं हम पूरी कोशिश करेंगे की हम अगले आलेख में आपके इक्षा अनुसार जानकारी ला पाएं. धन्यवाद !!

Ankita Shukla

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