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कंपनी और फर्म में क्या अंतर है !!

नमस्कार दोस्तों…आज हम आपको “फर्म और कम्पनी” के विषय में कुछ जानकारी देने जा रहे हैं. आज हम आपको बताएंगे कि “कम्पनी और फर्म क्या होती है और इनमे क्या अंतर पाए जाते हैं?”. क्यूंकि हमने कई बार लोगों को फर्म और कम्पनी को एक समझते देखा है, जो कि गलत है. इसलिए आज हम आपको इसी विषय में कुछ जानकारी देना कहते हैं. लेकिन इसे बताने से पहले हम आपको बताना चाहते हैं कि यदि आपके भी मन में कोई प्रश्न हो तो आप हमे नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में कमेंट के माध्यम से बता सकते हैं.

कंपनी क्या है | What is Company in Hindi !!

जैसा की हम सब जानते हैं, आज के समय में हर कोई अपना बिज़नेस करना चाहता है. और यदि बिज़नेस या व्यवसाय की बात करे, तो इनके कई रूप भी हैं, जिनमे से कपंनी भी एक है. कंपनी की यदि बात की जाये तो कोई भी व्यवसायी संगठन जिसे कम्पनी अधिनियम के तहत गठित एवं किया जाये और उसकी कुल पूंजी छोटे छोटे अंशों में विभाजित की गयी हो. कंपनी कहलाती है. कंपनी कानून द्वारा ही स्थापित, संचालित और बंद की जा सकती है. कंपनी हमेशा भारतीय कम्पनी अधिनियम 1956 के अंतगर्त निर्मित और पंजीकृत की जाती है.

कंपनी के मुख्य चार स्तम्भ ये हैं.

  • प्रवर्तक (Promoter)
  • संचालक (Director)
  • अंशधारी (Shareholder)
  • सम्पादक (Liquidator)

फर्म क्या है | What is the firm in Hindi !!

भागीदारी या साझेदारी एक व्यावसायिक संगठन का रूप है जिसमे दो या उससे अधिक व्यक्ति एक साथ मिलके एक पारस्परिक संबंध रखते हैं, जिसमे सभी लाभ कमाने हेतु एक व्यावसायिक उद्यम का गठन करते हैं. और वो सभी व्यक्ति जो एक साथ मिलकर व्यवसाय करते हैं. उन्हें सामूहिक रूप से फर्म का नाम दिया जाता है. फर्म भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के प्रावधनों के अंतर्गत आता है.

Difference between Company and Firm in Hindi | कंपनी और फर्म में क्या अंतर है !!

Difference between Company and Firm in Hindi | कंपनी और फर्म में क्या अंतर है !!

# कंपनी की सम्पत्ति पे उसके सदस्यों का कोई भी व्यक्तिगत अधिकार नहीं माना जाता है जबकि फर्म की संपत्तियों पर साझेदारों का व्यक्तिगत रूप से अधिकार होता है.

# कंपनी में सदस्यों को एक सीमा तक ही महत्व दिया जाता है जबकि फर्म में सदस्यों को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है.

# फर्म में लेनदार फर्म और अन्य सदस्यों का व्यक्तिगत लेनदार भी होता है और यदि किसी कारणवस फर्म उसका भुगतान नहीं कर पाती तो लेनदार फर्म के सदस्यों की व्यक्तिगत संपत्तियों पर अपना दावा करने के लिए सक्षम होता है जबकि कंपनी में लेनदार किसी भी सूरत में सदस्यों की व्यक्तिगत संपत्तियों पर अपना अधिकार नहीं कर सकता है.

# एक साझेदार अपनी फर्म के साथ कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं रखता है जबकि कंपनी अपने सदस्यों के साथ कॉन्ट्रैक्ट रखता है.

# फर्म में कोई भी सदस्य अपना हिस्सा किसी और को बिना सभी की अनुमति के नहीं बेच सकता जबकि कंपनी में सदस्य अपना हिस्सा किसी को भी बिना सभी की अनुमति के बेच सकता है.

# कोई भी साझेदार फर्म की संपत्तियों का निपटारा अपने अनुसार करने के लिए सक्षम होता है, मतलब उन्हें फर्म के लिए बेच और खरीद सकता है, लेकिन एक कंपनी का सदस्य ऐसा नहीं करने के लिए सक्षम नहीं होता है.

# कंपनी में कंपनी की स्थिति के दायित्व सामान्यत: सीमित रहते हैं और फर्म के असीमित।

# कंपनी में सदस्यों के बीच समझौता एक सार्वजनिक प्रपत्र होता है जबकि फर्म में निजी प्रपत्र होता है.

उम्मीद है दोस्तों आपको हमारे द्वारा दी गयी जानकारी पसंद आयी होगी. और यदि कोई गलती आपको हमारे ब्लॉग में आपको नजर आये तो आप हमे बता सकते हैं, जिससे हम आगे आने वाले ब्लॉग में ये गलती न होने दे. और यदि आप के पास कोई सवाल या सुझाव हमारे लिए है तो वो भी आप हमे बता सकते हैं. और ये सब चीजें आप हमे नीचे दिए गए कमेंट बॉक्स में कमेंट द्वारा बता सकते हैं. धन्यवाद !!!

Ankita Shukla

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