रेणुका/रेणुगा/रेनू ये सभी नाम एक ही देवी के हैं जिन्हे भारत में कई राज्यों में पूजा जाता है. इनके नाम के तीर्थ स्थल कर्नाटका, महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और तमिल नाडु आदि स्थानों में हैं. इनका एक मंदिर जो माहुर, महाराष्ट्र में हैं उसे एक शक्ति पीठ भी मानते हैं.
सूची
विभिन्न नाम
रेणुका/रेनू या यल्लम्मा या एकवीरा या Ellai अम्मान या Ellai अम्मा।(Marathi:श्री. रेणुका/ येल्लुआई, Kannada: ಶ್ರೀ ಎಲ್ಲಮ್ಮ ರೇಣುಕಾ, Telugu : శ్రీ రేణుక/ ఎల్లమ్మ, Tamil: ரேணு/Renu). हिंदू पंथ में,(देवी) के रूप में उनकी पूजा की जाती है। येलम्मा दक्षिण भारतीय राज्य महाराष्ट्र, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और तमिलनाडु की संरक्षक देवी है। उनके भक्त उन्हें “ब्रह्मांड की मां” या “जगदंबा” के रूप में सम्मानित करते हैं।
सत्य कथा
रेणुका माता के बारे मे महाभारत, हरिवंसा और भगवत गीता में जिक्र किया गया है.
रेणुका माता से जुड़ी कथा
रेणुका नामक एक राजा थे, जो दिल व पैसों के बहुत धनी थे उन्होंने अपनी प्रजा व परिवार की खुशाली व शांति के लिए यज्ञ कराये जिसके दौरान उन्हें एक पुत्री की प्राप्ति हुई जो उसी यज्ञ की अग्नि से प्रकट हुई थी जो यज्ञ राजा रेणुका ने कराया था. वो अपनी पुत्री को बहुत लाड़ प्यार व संस्कार के साथ रखते थे. राजा रेणुका के एक गुरु थे जिनका नाम अगस्त्य था उन्होंने राजा को सलाह दी की वो अपनी पुत्री जिसका नाम राजा ने अपने नाम पे रखा था रेणुका उसकी शादी जमदग्नि से करा दें जब रेणुका बड़ी हो जाये. उस समय रेणुका की आयु केवल आठ वर्ष थी.
जमदग्नि, रुचिक मुनि और सत्यवती के पुत्र थे, जमदग्नि का जन्म रुचिक मुनि और सत्यवती की कई तपस्याओं के बाद हुआ था. ये बात राजा रेणुका को भा गयी और उन्होंने रेणुका की और जमदग्नि की शादी करवा दी. जिसके पश्चात रेणुका और जमदग्नि दोनों रामश्रृंग पर्वत पे रहने लगे. जिसे वर्तमान में सवदत्ति नामक जगह जो बेलगाउं शहर में है से जाना जाता है. रेणुका अपनी जीवन को बड़े ही आराम से जमदग्नि के साथ व्यापन कर रही थीं रेणुका पूजा और यज्ञ में भी जमदग्नि का सहयोग करती थी. जिसके दौरान इन दोनों के बिच नजदीकियां बढ़ी और फिर रेणुका ने अंजना नाम की पुत्री को जन्म दिया जिन्हे अब अंजना देवी के नाम से जानी जाती हैं.
रेणुका की जीवन शैली बहुत ही अच्छी कट रही थी, रेणुका सुबह उठ के पूरी श्रद्धा और भाव के साथ मालप्रभा नदी पे जाती और वाहन स्नान करती. उनकी पूजा और पत्नी धर्म में इतनी शक्ति थी की वो एक पूरा घड़ा जो की केवल बालू या रेत का बना होता था उसे पानी से भर के घर तक लाती थी. जिसमे इनकी सहयता साँप करते थे और वो जल ये अपने पति को उनकी पूजा व दान के लिए लाके देती थी. ये कार्य इनके राज की दिनचर्या में था. उनका एक मंदिर ज़मानिया, ग़ाज़ीपुर में भी स्तिथ है.
सजा और पुनरुत्थान
ऐसे ही चलता रहा और कुछ समय बाद रेणुका ने पांच पुत्रों को जन्म दिया. जिनके नाम: वसु, विस्वा वसु, बृहद्यनु, ब्रूत्वकन्वा और रामभद्र थे. रामभद्र इनके सबसे छोटे बेटे थे. जिन्हे सभी बहुत ज्यादा प्यार करते थे. ये सभी भगवान शिव व माता पारवती की कृपा से हुए थे. इनके एक और पुत्र हुए जिनका नाम परशुराम था जो भगवान विष्णु का छठा अवतार थे.
एक दिन जब वो नदी की और गयी तो उन्होंने वहां गंधर्व के आत्माओं को खेलते देखा और उस समय वो अपने बच्चों को छोड़ के नदी में उतर गयी और कुछ समय के लिए वो अपना ध्यान खो बैठी और उन्ही गंधर्वों की और मुग्ध हो गयी जिसके कारन उनका पति धर्म जिससे उन्हें रेत का घड़ा बनाने में सहयता मिलती थी वो बंद हो गया और वो जल को उस बर्तन में रोक नहीं पाई और जब घर पहुंची. जमदग्नि ने देखा की आज रेणुका के हाथ खIली हैं तो वो सारा वाकया जो वहां हुआ होगा वो समझ गए और उन्होंने रेणुका को घर से गुस्सा करते हुए निकल दिया. तब रेणुका रट हुए पूर्व दिशा में गयी और एक पेड़ के नीचे बैठ के रोने लगी.
वहां वो दो स्वामी से मिली जिनका नाम एकनाथ और जोगिनाथ था. रेणुका ने पूरा वाकया उन दोनों से बताया और प्रार्थना की कैसे वो बापस अपने पति का प्यार व सम्मान पा सकती हैं हैं. जिसके बाद उन दोनों स्वामी ने उन्हें समझाया और कहा की सबसे पहले खुद को पवित्र करो जिसके लिए तालाब के किनारे जाके स्नान करो उसके बाद शिवलिंग जो खुद स्वामी ने दी थी उसकी पूजा करो. उसके पश्चात उसके बाद कुछ गावं व शहर में जाके भिक्षा में चावल मांगो((यह अनुष्ठान जिसे “जोगा बेडोडू” कहा जाता है, अभी भी कर्नाटक के एक विशेष महीने के दौरान महिलाओं द्वारा किया जाता है / मराठी में “जोगवा” बोलते हैं. ). फिर जो चावल मिले उसे गुड़ और चीनी के साथ पकाओ और श्रद्धा के साथ खाओ. और उन स्वामी ने कहा यदि ये काम तुम पूरी श्रद्धा के साथ तीन दिन तक करोगी तो चौथे दिन तुम अपने पति के पास जा सकती हो.
और रेणुका ने बिलकुल वैसा ही किया और जो भिक्षा में चावल मिलते थे उसमे से वो आधे चावल उन दोनों स्वनी एकनाथ और जोगिनाथ को दे देती थी और बाकि चावल को कहे अनुसार गुड़ चीनी के साथ पका के श्रद्धा के साथ कहती थी. और ये कार्य उन्होंने तीन दिवस तक किया. और सोचा की अब वो अपने पति के पास जा सकती हैं और वो बहुत उम्मीदों के साथ वो अपने पति जमदग्नि पास गयी.
लेकिन उनके पति का क्रोध शांत नहीं था उन्होंने अपने पुत्रों को आज्ञा दी की अपनी माता रेणुका को दंडित करो लेकिन उनके पुत्रों ने अपनी माता को दंड देने से साफ इंकार कर दिया. जिसके चलते जमदग्नि ने अपने चारों पुत्रों को को दंड दिया. जमदग्नि को शक्ति प्राप्त थी की वो बस देखने भर से ही जिसे चाहे जला के राख कर सकते हैं और उन्होंने ऐसा ही किया. और अपने चारों पुत्रों को जला के राख कर दिया.
उस समय परसुराम थे नहीं और जब वो वहां पहुंचे उस समय भी उनके पिता का क्रोध शांत नहीं था और परसुराम ने अपनी माता को रोटा और अपने भाइयों की राख देखि तो वो समझ गए और जब उनके पिता ने उनसे भी उनकी माता को दंड देने को कहा तो परसुराम को सोचना पड़ा और तुरंत उन्होंने अपने पिता की आज्ञा मन ली और अपनी माता को दंड दिया जिसमे उन्होंने उनका सर शरीर से अलग कर दिया था.
ये देख उनके पिता खुश हो गए और अपने पुत्र परसुराम को एक वरदान मांगने का अवसर दिया तो परसुराम ने उसमे उनसे अपने चारों भाइयों और अपनी माता को पुनः जीवित करने का वरदान माँगा जिससे की वो फिर से जीवित हो गए.इस घटना को लोग चमत्कार मैंने लगे और रेणुका को दोबारा से उसी रूप में पाके उनकी पूजा करने लगे.
रेणुका या येल्लम्मा
जब परसुराम अपनी माता को दंड दे रहे थे उस समय कुछ महिलाएं रेणुका को बचने आई थी जिसके चलते उन्हें भी अपना जीवन खोना पड़ा और जब परसुराम दोबारा से अपनी माता को जीवित कर रहे थे उस समय एक नीची जाती की और जिसका नाम येल्लम्मा था उसके धड़ से रेणुका का सर जोड़ दिया और रेणुका के धड़ से येल्लम्मा का सर जोड़ दिया. जिसके चलते रेणुका के पति ने येल्लम्मा के धड़ जिसमे रेणुका का सर लगा था उसे अपनी पत्नी मानते हुए स्वीकार किया और रेणुका को नीची जाती के लोगों के साथ रहना पड़ा. तब से ही दोनों को पूजा जाता है. ये दोनों एक ही हैं. इनके रूप अलग हैं.
मंदिर और संबंधित जगहें
हर वर्ष २००,००० से भी ज्यादा लोग इनके दर्शन के लिए येल्लम्मा गुड़ी मंदिर आते हैं जो सौंदत्ती में स्तिथ है. इनका दूसरा मंदिर बिदारहल्ली, गदग, कर्नाटक, इंडिया में रेणुका येल्लम्मा नाम से प्रसिद्ध है. यहां कार्तिक मास में भिभिन्न राज्यों से लोग आते हैं और रेणुका येल्लम्मा कार्तिक मनाते हैं.
सभी का मानना है की रेणुका देवी ने जमदग्नि से शादी करने के बाद यहीं रही थी. और ये भी मानते हैं की रेणुका देवी सुबह उठ के पवित्र तुंगभद्रा नदी में स्नान के लिए आती थी. और वो यहां पूरी श्रद्धा के साथ रेत का घड़ा बनती थी उसमे जल भरती थी और सांप की सहयता से जमदग्नि के पूजा के लिए जल लेके जाती थी.
इनका एक और मंदिर जो चंद्रगुत्ती, सोरबा तलूक शिमोगा में बना है, यह मंदिर प्राचीन वास्तुकला का एक उदाहरण है और कदंबा काल में वापस आता है।इनका एक मंदिर माहूर, महाराष्ट्र में है जिसे माता का जन्मस्थान कहा जाता है। नलगोंडा, तेलंगाना जहां मंगलवार मुख्य शुभ दिन है।
हिमाचल प्रदेश में रेणुका झील का नाम रेणुका देवी के नाम पर रखा गया है। कथा के अनुसार (राजा सहस्रार्जुन) अर्जुन कामधेनु गाय जमदग्नि और रेणुका से लेना चाहते थे लेकिन उन्होंने ने नहीं दी इस लिए अर्जुन ने जमदग्नि की हत्या कर जिसके बाद रेणुका भी जमदग्नि के साथ सती हो गयी ये घटना महूरगढ़, महाराष्ट्र की है. जिसके बाद वहाँ भी इनका मंदिर बना. तमिल नाडु में इनका रेणुगाम्बल अम्मान नाम का मंदिर बना है जो पदवेदु, तिरुवन्नामलाई में स्थित है और ये एक शक्ति स्थल है. इनका एक मंदिर रेणुका परमेश्वरि जो की तिरुचम्पल्लि सेमबनारकोईल के पास नागपट्टिनम में तमिल नाडु में है.
रेणुका देवी और जमदग्नि की पूजा यमुना नदी के पास रवाईं वैली, उत्तरकाशी शहर, उत्तराँचल में बड़ी धूमधाम से की जाती है. और कई सारे मंदिर बनाये गए हैं इन दोनों के ऊपर. इनका एक मंदिर जमदग्नि मंदिर जो की ठान गावं यमुना बैंक के पास और रेणुका मंदिर जो की उपहिल गावं देवदोखरि, बांचांगाओं, सरनौल में स्थित हैं. ऐसे कई स्थान हैं जहाँ इनकी पूजा बड़ी धूमधाम से की जाती है. जून के महीने में पुरे एक सप्ताह तक इनका पर्व बड़ी धूम धाम से मनाया जाता है.