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शूलिनी माता मंदिर का इतिहास !!

शूलिनी माता मंदिर परिचय !!

दोस्तों नमस्कार , आज के आलेख में हम आपको माता शूलिनी मंदिर से जुड़े कुछ रहस्य के बारे में बताएंगे । माता शूलिनी साक्षात देवी मां दुर्गा का स्वरूप है। जिसे देवी और शक्ति कहा जाता है । मां शूलिनी को दिव्या माता, आदि – परा शक्ति , महाशक्ति , लता देवी शक्ति विभिन्न नामों से जाना जाता है। मां शूलिनी में भगवान शिव आशीर्वाद से भगवान श्री विष्णु जी को नरसिंह जी के अपने चौथे अबतार में तब्दील करने के लिए बनाया था | और इनके क्रोध के कारण ब्रह्मांड को बचाने के लिए उनकी पत्नी की गई थी । माता शूलिनी का मंदिर या धाम मेरु पर्वत , कैलाश पर्वत पर स्थित है जो सोलन में पड़ता है | माता शूलिनी केसर जिसमें धनुष और तीर, भाला, तलवार, ढाल, घंटी, गुलाबी कमल का फूल , युद्ध के लिए कुल्हाड़ी, गरज, सांप, अभी इन के मुख्य अस्त्र-शस्त्र हैं।

शूलिनी माता मंदिर का इतिहास !!

सोलन के इस क्षेत्र में मनाई जाने वाले सबसे प्रसिद्ध और पारंपरिक मेलों में से माता शूलिनी का भी एक मेला लगता है जिसका इस प्रदेश के अंदर बहुत बड़ा महत्व है। बदलते समय के दौरान यह मेला आज भी अपनी पुरानी परंपरा के अनुसार चल रहा है। माता शूलिनी के इस मंदिर का पुराना इतिहास बघाट रियासत से जुड़ा हुआ है। बघाट रियासत के लोग माता शूलिनी को अपनी कुलदेवी के रूप में मानते थे तभी से माता शूलिनी बंघाट रियासत के शासकों के लिए उनकी कुलदेवी के रूप में पूजी जाती है। वर्तमान समय के अंदर माता शूलिनी का भव्य मंदिर सोलन शहर के दक्षिण दिशा में बना हुआ है। इस मंदिर के अंदर माता शूलिनी के अलावा अन्य देवी देवताओं की भी पूजा होती है जैसे कि शिरगुल देवता ,माली देवता, इत्यादि की पूजा होती है तथा मंदिर के अंदर इनकी बड़ी प्रतिमाएं भी विद्यमान है । पुराने ग्रंथों के मुताबिक देखा जाए तो माता शूलिनी अपने माता पिता की सात बहने थी । इनकी अन्य 6 बहने हिंगलाज देवी, जेठी ज्वाला जी,लुगासना माता, नैना देवी और तारा देवी के नाम से पूजी जाती हैं ।

शूलिनी मंदिर : माता की पूजा करने के लाभ !!

सोलन प्रदेश के अंदर बहुत बड़ी मान्यता है कि यहां पर माता शूलिनी लोगों पर बहुत ही दयावान और प्रसन्न है तभी तो यहां पर किसी प्रकार की या प्राकृतिक आपदा या महामारी का प्रकोप नहीं होता है। इसके बावजूद यहां के लोगों में हरदम सुख समृद्धि और खुशहाली बनी रहती है। यहां पर होने वाले शूलिनी माता के मेले की प्राचीन परंपरा आज भी जीवित है। पुरानी काल से ही है मेला बड़ी धूमधाम से सोलन के अंदर आषाढ़ मास के दूसरे रविवार कोसली नी माता के भव्य मंदिर के समीप खुले खेतों में मनाया जाता है। यहां पर मेला घूमने के लिए लोग दूर-दूर से आते हैं तथा यहां पर पर्यटन की दृष्टि से मेले को राज्यस्तरीय बढ़ाने के लिए यहां पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाता है। यहां पर जो मेला लगता है वह सोलन के लोगों की एकता और भाईचारे का एक प्रतीक है। यह मेला राष्ट्र की एकता और अखंडता की भावना लोगों में पैदा करता है क्योंकि यहां पर मेले में लोग मिलजुल कर काम करते हैं।

शूलिनी माता मंदिर : कुछ रोचक तथ्य !!

यहां पर सबसे खास बात यह है कि यह क्षेत्र 12 घाटो से मिलकर बनने वाली रियासत के 36 वर्ग मील के दायरे में फैला हुआ है तभी से इसका नाम बघाट रियासत पड़ा था । बाघाट रियासत की शुरुआत में राजधानी जौना जी उसके बाद कोटी और इसके बाद में सोलन बनी थी | यह इसका पुराना इतिहास रहा है । बाघाट रियासत की अंतिम शासक राजा दुर्गा सिंह रहे थे । माता शूलिनी का यह मेला बहुत पुराने समय से ही लगता आ रहा है ।

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Ankita Shukla

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