एक गांव में परमानंद नामक एक विद्वान रहता था | उस गांव के अंदर लोग अधिकतर अशिक्षित थे और उन्हें शिक्षा के बारे में बिल्कुल भी ज्ञान नहीं था । परमानंद यह चाहता था गांव के लोग शिक्षित हो। वह गांव के लोगों को शिक्षा देना चाहता था। इस बात का ध्यान रखकर परमानंद ने अपने घर पर ही एक छोटी सी पाठशाला बना ली । परमानंद गांव के गरीब बच्चों को फ्री में शिक्षा देने लगा | गरीब बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ परमानंद ने उनके कोपी किताबो तथा उनकी पढ़ाई का सारा खर्चा खुद वहन करने लगा। जो कोई भी बच्चा परमानंद के पास पढ़ने आता था उसे परमानंद अपने दिल और जान से पढ़ाता | तथा बच्चे पढ़ाने के बदले परमानंद को गुरु दक्षिणा देने लगे | परमानंद उन पैसों को अपने खुद के हित में ना इस्तेमाल करके बच्चों के ही हित में इस्तेमाल करने लगा । उन पैसों से वह इनके शिक्षा की सामग्री तथा उनकी पढ़ाई पर इस्तेमाल करने लगा।
एक बार गांव के अंदर चैतन्य नाम का एक विद्वान आया जो कि बहुत बड़ा विद्वान था| चैतन्य ने गांव के पास में बड़े-बड़े राज्यों के अंदर राजाओं के यहां काम किया था । राजाओं से सम्मान भी पा चुका था। चैतन्य की गांव में लोग बहुत ज्यादा इज्जत करते थे। चैतन्य को परमानंद के बारे में पता लगा कि वह फ्री में शिक्षा प्रबंध करवा रहा है यह सब सुनकर चैतन्या परमानंद के पास जा पहुंचा। परमानंद के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा की गांव में लोगों के सामने प्रशंसा की । परमानंद को पहले गांव में कुछ ही लोग जानते थे परंतु चैतन्य के इस प्रशंसा के बाद गांव के अधिकतर लोग में परमानंद की इज्जत करने लगे वह उसे जानने लगे। इसके बाद गांव में अधिकतर लोगों ने अपने बच्चों को परमानंद के पास शिक्षा के लिए भेजना शुरू कर दिया। चैतन्य कुछ दिनों तक परमानंद के यहां रहे। कुछ दिनों बाद चैतन्य ने रवानगी लेते समय परमानंद को उच्च शिक्षा हेतु कुछ पैसों का दान किया । हमेशा की तरह परमानंद ने उन पैसों को निजी उपयोग में ना कर के , शिक्षा पर ही व्यय किया। परमानंद की पाठशाला बहुत अच्छे से चल रही थी पास के गांव के लोगों ने भी अपने बच्चों को शिक्षा के लिए परमानंद के यहां भेजना शुरू कर दिया। परंतु कुछ दिनों बाद किसी कारण वंश परमानंद की आकस्मिक मृत्यु हो गई। पाठसाला की संपूर्ण जिम्मेदारी परमानंद के पुत्र मनोहर पर आ गई।
मनोहर अपने पिता की ही तरह सद्गुणों से भरा हुआ था परंतु उसकी सोच अपने पिता से बिल्कुल अलग थी। वह पाठशाला के अंदर कुछ बदलाव करना चाहता था उसने यह सोच कर पाठशाला के अंदर कुछ नियमों को बना दिया। जैसे कि जहां पर वह निशुल्क पढ़ाता था वहां पर वह शुल्क लेने लगा। बच्चों के कपड़े और खाने के लिए को बच्चों से वसूलने लगा। यह सब होने के बाद गरीब घरों के बच्चे यह सब ना कर पाए तत्पश्चात वह भी पाठशाला जाने छोड़ दिए। धीरे-धीरे पाठशाला के अंदर वही बच्चे थे जो इन सभी नियमों का पालन कर सकते थे । धीरे-धीरे समय बढ़ता गया और विधालय के अंदर गिने-चुने ही विद्यार्थी रह चुके थे। परंतु गांव के अंदर लक्ष्मण नाम का परमानंद का एक अच्छा शिष्य था । लक्ष्मण हमेशा ही अपने गुरु की भांति ही पढ़ाना चाहता था । लक्ष्मण ने खेत के काम के साथ साथ शाम को गरीब बच्चों को फ्री में पढ़ाना शुरू कर दिया। लक्ष्मण एक किसान था। धीरे धीरे लक्ष्मण ने परमानंद की भांति ही अपनी पाठशाला को बढ़ा लिया और गरीब बच्चों के कपड़े और शिक्षा पर खर्चा खुद वहन करने लगा। परमानंद के पुत्र मनोहर को यह बात पता चली तब वह उससे जलने लगा । मनोहर ने गांव के अंदर एक अफवाह फैला दी थी की लक्ष्मण बच्चों को झूठी शिक्षा देता है और उन्हें झांसा देकर पढ़ाता है। परंतु कुछ दिनों बाद चैतन्य गांव में आए लक्ष्मण के बारे में सुनकर उसके पास ही दो-तीन दिनों के लिए रुक गए। दो-तीन दिनों के बाद चेतन ने गांव के लोगों को बताया कि लक्ष्मण बच्चों को बहुत ही अच्छी शिक्षा प्रधान कर रहा है और सच्चे मन से पढा रहा है । यह सुनकर गांव वालों के मन में लक्ष्मण के प्रति और भी सम्मान उत्पन्न हो गया और परमानंद के बेटे द्वारा फैलाई गयी अफवाह का गांव वालों पर कोई असर नहीं हुआ। तत्पश्चात चैतन्य ने लक्ष्मण को एक सम्मान पत्र और कुछ पैसे दिए जिसका इस्तेमाल कर कर लक्ष्मण ने गांव के अंदर विद्यालय को बड़ा कर दिया पास के गांव के विद्यार्थी यहां पढ़ने आने लगे।
शिक्षा– इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि शिक्षित व्यक्ति द्वारा दिए जाने वाले ज्ञान का कोई मोल नहीं होता । एक व्यक्ति जो मुफ्त में ज्ञान देता है वही असली विद्वान होता है । कभी भी इंसान को अपनी जिंदगी में लालच नहीं करना चाहिए। अगर इंसान चाहे तो काम को सच्चे दिल और मन से करें तो पैसा अपने आप उसके पास चला आता है। एक व्यक्ति का सच्चा ज्ञान उसे बहुत बड़ा विद्वान बना सकता है!!