रूपक अलंकार की परिभाषा | Definition of Rupak Alankar in Hindi !!
जिस किसी अलंकार में उपमेय और उपमान में कोई अंतर दिखाई नहीं देता है, तो वहाँ रूपक अलंकार होता है।
आसान भाषा में कहे तो, जहाँ पर उपमेय और उपमान के बीच किसी भी प्रकार का अंतर समाप्त होता है या उसे एक कर दिया जाता है तो वहां रूपक अलंकार होता है।
जैसे :-
1. उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विगसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन भ्रंग।।
2. बीती विभावरी जाग री,
अम्बर-पनघट में डुबो रही तारा-घट उषा-नागरी।
रूपक अलंकार के लिए तीन बातों का होना आवश्यक होता है।
1. उपमेय को उपमान का रूप देना
2. वाचक पद का लोप
3. उपमेय का भी साथ-साथ वर्णन