नमस्कार दोस्तों….आज हम आपको “Judge and Magistrate” अर्थात “जज और मजिस्ट्रेट” के विषय में बताने जा रहे हैं. आज हम बताएंगे कि “जज और मजिस्ट्रेट क्या है और इनमे क्या अंतर होता है?”. दोस्तों कई लोग इन्हे एक ही समझ लेते हैं. लेकिन ऐसा नहीं है, इनमे कई अंतर होते हैं. इस बात को कुछ लोग ही जानते हैं और जो जानते हैं, वो ये नहीं जानते कि आखिर अंतर है क्या?, और कुछ तो ऐसे हैं जिन्हे इनमे अंतर है यही नहीं पता है. इन्ही सब बातों के चलते आज हम आपको बताने जा रहे हैं दोनों के बीच के अंतर को. तो चलिए शुरू करते हैं आज का टॉपिक.
सूची
जज क्या है | What is the Judge in Hindi !!
जज हम न्यायाधीश को कहते हैं. जो न्याय करते हैं, ये उन मामलों को देखते हैं जो सिविल यानी व्यवहार मामले होते हैं. जिन्हे उर्दू में दीवानी मामले के नाम से जाना जाता है. ये दंड नहीं देते हैं, केवल न्याय करते हैं. इनके अंतर्गत व्यवहारिक और जमीन, जायदाद के मामले आते हैं. इनके मामले वो मामले होते हैं, जो अधिकार, अनुतोष या क्षतिपूर्ति से जुड़े होते हैं, ये सीपीसी 1908 के सेक्शन 9 के तहत आते हैं.
इनमे आने वाले मामले जमीन, घर, सम्पत्ति के होते हैं. इनमे अपराध और दंड जैसे मामले शामिल नहीं होते हैं.
मजिस्ट्रेट क्या है | What is Magistrate in Hindi !!
मजिस्ट्रेट को दंडाधिकारी भी कहा जाता है, ये क्रिमिनल केस संभालते हैं अर्थात दाण्डिक मामले, जिन्हे उर्दू में फौजदारी मामले के नाम से भी जाना जाता है. इनके अंतर्गत वो मामले पेश किये जाते हैं, जिनमें अपराध के लिए प्रावधान है और जिनमें दंड की मांग की जाती है। इसमें चोरी, डकैती, कत्ल, बलत्कार, दहेज़प्रथा, धोखाधड़ी जैसे मामले शामिल होते हैं. ये मामले क्रिमिनल कोर्ट में ले जाये जाते हैं और मजिस्ट्रेट भी वहीं अपना फैसला सुनाता है.
Difference between Judge and Magistrate in Hindi | जज और मजिस्ट्रेट में क्या अंतर है !!
# जज को हम न्यायाधीश के नाम से और मजिस्ट्रेट को दंडाधिकारी के नाम से भी जानते हैं.
# जज लोअर लोअर कोर्ट (निचली अदालत) में बैठते हैं जबकि मजिस्ट्रेट फर्स्ट क्लास या सेकंड क्लास कोर्ट में बैठते हैं.
# जज व्यवहारिक और जमीनी मामले संभालता है और मजिस्ट्रेट आपराधिक मामले संभालता है.
# जज केवल न्याय करता है और मुआबजा दिलाता है, जबकि मजिस्ट्रेट न्याय के साथ दंड भी देता है.
# जज के अंतर्गत दीवानी मामले आते हैं मजिस्ट्रेट के अंतर्गत फौजदारी के मामले आते हैं.
# जज के पास आने वाले मामलों को सिविल यानी व्यवहार मामले कहा जाता है जबकि मजिस्ट्रेट के पास आने वाले मामलों में क्रिमिनल केस यानी दाण्डिक मामले कहा जाता हैं.
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