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अलंकार की परिभाषा (Definition of Alankar in Hindi) !!
किसी भी काव्य की सुंदरता बढ़ाने के लिए जिन यंत्रो का प्रयोग किया जाता है उन्हें अलंकार कहते हैं. जिस प्रकार मनुष्य अपने शरीर की सुंदरता को बढ़ाने के लिए आभूषणों और श्रंगार का प्रयोग करता है, उसी प्रकार कवि काव्य की सुंदरता को बढ़ाने के लिए उसमे अलंकार का प्रयोग करता है.
अलंकार के भेद !!
अलंकार के 2 भेद होते हैं :
- शब्दालंकार
- अर्थालंकार
1. शब्दालंकार
जो अलंकार शब्दों का प्रयोग करके काव्यों को अलंकृत करते हैं, उन्हें शब्दालंकार कहा जाता है. अर्थात जब किसी काव्य में कोई विशेष प्रकार का शब्द प्रयोग करने से काव्य की सुंदरता बढ़ जाती है और उसके पर्यायवाची शब्द रखने मात्र से वह सुंदरता लुप्त हो जाती है तो वह शब्दालंकार कहलाता है.
शब्दालंकार के भेद:
- अनुप्रास अलंकार
- यमक अलंकार
- श्लेष अलंकार
1. अनुप्रास अलंकार
जब किसी काव्य को आकर्षित बनाने के लिए किसी वर्ण की आवृति को बार बार उपयोग किया जाता है, तो वह अनुप्रास अलंकार कहलाता है।
विशेष प्रकार के वर्ण की आवृति से वाक्य सुनने में सुंदर लगता है। जैसे :
- चारु चन्द्र की चंचल किरणें खेल रही थी जल थल में ।
ऊपर के उदाहरण में आप देख सकते हैं कि ‘च’ वर्ण को बार बार प्रयोग किया गया है, जिससे उसकी सुंदरता बढ़ रही है. इसी प्रकार के वाक्य अनुप्रास अलंकार के अंतर्गत आते हैं.
2. यमक अलंकार
जिस तरह अनुप्रास अलंकार में किसी एक वर्ण की बार बार आवृति होती है, उसी प्रकार यमक अलंकार में एक शब्द की बार बार आवृति होती है, जिससे काव्य की सुंदरता बढ़ जाती है. इस प्रकार के काव्य में एक ही शब्द को दो बार या उससे अधिक बार प्रयोग किया जाता है, लेकिन उनका अर्थ भिन्न भी हो सकता है. जैसे:
- काली घटा का घमंड घटा।
जैसा कि आप देख सकते हैं, कि यहां घटा शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है और इसमें पहले “घटा” शब्द का अर्थ ‘वर्षाकाल’ में उड़ने वाली ‘मेघमाला’ है और दूसरे “घटा” का अर्थ “कम” होना है. इस प्रकार के काव्य में यमक अलंकार का प्रयोग होता है.
3. श्लेष अलंकार
श्लेष अलंकार बाकी दोनों अलंकारों से भिन्न होता है, इसमें एक ही शब्द का प्रयोग होता है और उसका अर्थ भिन्न भिन्न होता है. जैसे:
- रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून पानी गए न ऊबरे मोई मानस चून।
यह काव्य रहीम द्वारा लिखा गया था जिसमे रहीम ने पानी को तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में है जिसका अर्थ विनम्रता से है। कवि कह रहा हैं कि मनुष्य में हमेशा विनम्रता (पानी) होना चाहिए। पानी का दूसरा अर्थ आभा, अर्थात तेज या चमक से है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं।
पानी का तीसरा अर्थ जल से है जिसे आटे (चून) से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम का कहना है कि जिस तरह आटे का अस्तित्व पानी के बिना नम्र नहीं हो सकता और मोती का मूल्य उसकी आभा के बिना नहीं हो सकता है, उसी तरह मनुष्य को भी अपने व्यवहार में हमेशा पानी (विनम्रता) रखना चाहिए जिसके बिना उसका मूल्यह्रास होता है। यह काव्य श्लेष अलंकार के अंतर्गत आता है.
2. अर्थालंकार
जब किसी काव्य की सुंदरता उसके अर्थ पर आधारित होती है तो वह अलंकार अर्थालंकार के अंतर्गत आता है ।
अर्थालंकार के भेद
अर्थालंकार के पाँच भेद होते हैं :
- उपमा अलंकार
- रूपक अलंकार
- उत्प्रेक्षा अलंकार
- अतिशयोक्ति अलंकार
- मानवीकरण अलंकार
1. उपमा अलंकार
उप शब्द का अर्थ होता है समीप से और मा शब्द का अर्थ होता है किसी चीज की तुलना या उसे परखना। अर्थात जब दो विभिन्न वस्तुओं में समानता दिखाई जाती है, तब वहाँ उपमा अलंकार का प्रयोग होता है । जैसे:
- कर कमल-सा कोमल है ।
इस वाक्य में पैरों की कोमलता की समानता कमल से की गयी है.
उपमा के भी दो अंग है:
- उपमेय : जिस वस्तु की समानता किसी दूसरे पदार्थ से की जाये तब वह उपमेय होते है । जैसे: कर कमल सा कोमल है ।
- उपमान : उपमेय को जिसके समान बताया जाता है उसे उपमान कहते हैं । उक्त उदाहरण में ‘कमल’ उपमान है.
2. रूपक अलंकार
जिस काव्य में उपमान और उपमेय में अभिन्नता या अभेद की पुष्टि होती है, उस काव्य में रूपक अलंकार होता है. जैसे:
- “मैया मैं तो चन्द्र-खिलौना लैहों”
इस वाक्य में चन्द्रमा और खिलोने में कोई समानता को न दर्शाते हुए चाँद को ही खिलौना बोला गया है. यह वाक्य रूपक अलंकार है.
3. उत्प्रेक्षा अलंकार
जिस काव्य या वाक्य में उपमेय में ही उपमान के होने की संभावना का वर्णन होता है, उस प्रकार के वाक्य में उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। यदि पंक्ति में -मनु, जनु, मेरे जानते, मनहु, मानो, निश्चय, ईव आदि आता है बहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है। जैसे:
- मुख मानो चन्द्रमा है।
उदाहरण में दिए गए वाक्य में मुख के चन्द्रमा होने की संभावना बताई गयी है, इसमें साथ ही मानो भी प्रयोग किया गया है, इस प्रकार के वाक्य उत्प्रेक्षा अलंकार के अंतर्गत आते हैं.
4. अतिशयोक्ति अलंकार
जब किसी वाक्य में किसी प्रकार की बात का वर्णन बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया जाता है, तब वहां अतिशयोक्ति अलंकार पाया जाता है। जैसे :
- आगे नदियाँ पड़ी अपार, घोडा कैसे उतरे पार। राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार।
ऊपर दिए गए उदाहरण में चेतक नामक घोड़े की शक्तियों व स्फूर्ति का बहुत बढ़ा चढ़ा कर वर्णन किया गया है.
5. मानवीकरण अलंकार
जब वाक्य में प्राकृतिक चीज़ों में ही मानवीय भावनाओं के होने का वर्णन मौजूद हो तब वहां मानवीकरण अलंकार होता है। जैसे :
- फूल हँसे कलियाँ मुस्कुराई।
ऊपर दिए गए उदाहरण में आप देख सकते हैं की फूलों के हसने का वर्णन किया गया है जो मनुष्य द्वारा ही सम्भव है अर्थात इस वाक्य में मानवीकरण अलंकार है।